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पपीहा ( Hindi )

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पपीहा एक पक्षी है जो दक्षिण एशिया में बहुतायत में पाया जाता है। यह दिखने में शिकरा की तरह होता है। इसके उड़ने और बैठने का तरीका भी बिल्कुल शिकरा जैसा होता है। इसीलिए अंग्रेज़ी में इसको Common Hawk-Cuckoo कहते हैं। यह अपना घोंसला नहीं बनाता है और दूसरे चिड़ियों के घोंसलों में अपने अण्डे देता है। प्रजनन काल में नर तीन स्वर की आवाज़ दोहराता रहता है जिसमें दूसरा स्वर सबसे लंबा और ज़्यादा तीव्र होता है। यह स्वर धीरे-धीरे तेज होते जाते हैं और एकदम बन्द हो जाते हैं और काफ़ी देर तक चलता रहता है; पूरे दिन, शाम को देर तक और सवेरे पौं फटने तक।

परिचय

पपीहा कीड़े खानेवाला एक पक्षी है जो बसंत और वर्षा में प्रायः आम के पेड़ों पर बैठकर बड़ी सुरीली ध्वनि में बोलता है।

देशभेद से यह पक्षी कई रंग, रूप और आकार का पाया जाता है। उत्तर भारत में इसका डील प्रायः श्यामा पक्षी के बराबर और रंग हलका काला या मटमैला होता है। दक्षिण भारत का पपीहा डील में इससे कुछ बड़ा और रंग में चित्रविचित्र होता है। अन्यान्य स्थानों में और भी कई प्रकार के पपीहे मिलते हैं, जो कदाचित् उत्तर और दक्षिण के पपीहे की संकर संतानें हैं। मादा का रंगरूप प्रायः सर्वत्र एक ही सा होता है। पपीहा पेड़ से नीचे प्रायः बहुत कम उतरता है और उसपर भी इस प्रकार छिपकर बैठा रहता है कि मनुष्य की दृष्टि कदाचित् ही उसपर पड़ती है। इसकी बोली बहुत ही रसमय होती है और उसमें कई स्वरों का समावेश होता है। किसी किसी के मत से इसकी बोली में कोयल की बोली से भी अधिक मिठास है। हिंदी कवियों ने मान रखा है कि वह अपनी बोली में 'पी कहाँ....? पी कहाँ....?' अर्थात् 'प्रियतम कहाँ हैं'? बोलता है। वास्तव में ध्यान देने से इसकी रागमय बोली से इस वाक्य के उच्चारण के समान ही ध्वनि निकलती जान पड़ती है। यह भी प्रवाद है कि यह केवल वर्षा की बूँद का ही जलपीता है, प्यास से मर जाने पर भी नदी, तालाब आदि के जल में चोंच नहीं डुबोता। जब आकाश में मेघ छा रहे हों, उस समय यह माना जाता है कि यह इस आशा से कि कदाचित् कोई बूँद मेरे मुँह में पड़ जाय, बराबर चोंच खोले उनकी ओर एक लगाए रहता है। बहुतों ने तो यहाँ तक मान रखा है कि यह केवल स्वाती नक्षत्र में होनेवाली वर्षा का ही जल पीता है और गदि यह नक्षत्र न बरसे तो साल भर प्यासा रह जाता है।

इसकी बोली कामोद्दीपक मानी गई है। इसके अटल नियम, मेघ पर अन्यय प्रेम और इसकी बोली की कामोद्दीपकता को लेकर संस्कृत और भाषा के कवियों ने कितनी ही अच्छी अच्छी उक्तियाँ की है। यद्यपि इसकी बोली चैत से भादों तक बराबर सुनाई पड़ती रहती है; परंतु कवियों ने इसका वर्णन केवल वर्षा के उद्दीपनों में ही किया है। वैद्यक में इसके मांस को मधुर कषाय, लघु, शीतल कफ, पित्त और रक्त का नाशक तथा अग्नि की वृद्धि करनेवाला लिखा है।

अभिलक्षण

पपीहा (मादा बायें) शिकरे (दायें) के बहुरूपिये के रूप में विकसित हुआ है।[3] पपीहा (मादा बायें) शिकरे (दायें) के बहुरूपिये के रूप में विकसित हुआ है।[3]
पपीहा (मादा बायें) शिकरे (दायें) के बहुरूपिये के रूप में विकसित हुआ है।[3]

पपीहा एक मध्य से बड़े आकार का पक्षी होता है, जो तकरीबन कबूतर के आकार का होता है (३४ से.मी.)। इसके पंख पीठ में स्लेटी रंग के होते हैं और पेट में सफ़ेद-भूरी धारियाँ होती हैं। पूँछ में चौड़ी धारियाँ होती हैं। नर और मादा दोनों एक जैसे दिखते हैं। उनके आँखों के बाहर एक पीला छल्ला होता है। इनके अवयस्क भी शिकरे के अवयस्क की तरह दिखते हैं और उनके पेट में तीर के ऊपरी भाग जैसे काले निशान होते हैं।[4] पहली बार देखने में यह बिल्कुल किसी बाज़ की तरह दिखता है। उड़ते समय यह किसी बाज़, खासतौर पर शिकरा, की तरह उड़ता है यानि पर फड़फड़ाकर फिर उन्हें फैलाकर उड़ता है। वह बाज़ की तरह ही उड़ते समय ऊपर की ओर उड़ता है और बैठने के बाद अपनी पूँछ को एक से दूसरी तरफ़ हिलाता है। यहाँ तक की पक्षी और छोटे जानवर भी उसके दिखावे से भ्रमित हो जाते हैं और भय से शोर मचाने लगते हैं। नर मादा से थोड़ी बड़े होते हैं।[5]

पपीहे का गीत

आवास

यह पश्चिम में पाकिस्तान से पूर्व में बांग्लादेश और उत्तर में ८०० मी. की हिमालय की ऊँचाई से दक्षिण में श्री लंका तक पाया जाता है। यह अमूमन साल भर अपने ही इलाके में आवास करता है लेकिन सर्दियों में जहाँ ऊँचाई ज़्यादा हो और इलाका ज़्यादा सूखा होता है, वहाँ से यह पास के इलाकों में प्रवास कर जाता है जहाँ की पर्यावरणीय परिस्थितियाँ ज़्यादा अनुकूल हों। यह हिमालय में १००० मी. से नीचे पाया जाता है लेकिन उसके ऊपर के इलाके में इसकी बिरादरी का बड़ा कोकिल पाया जाता है। पपीहा पेड़ों में ही रहता है और कभी ही ज़मीन पर आता है। इसका आवास बाग, बगीचे, पतझड़ी और अर्ध सदाबहार जंगलों में होता है।[5]

सन्दर्भ

  1. BirdLife International (2008). Cuculus varius. 2008 संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची. IUCN 2008. Retrieved on २७/०९/२०१२.
  2. Gyldenstolpe,N (1926). "Types of birds in the Royal Natural History Museum in Stockholm" (PDF). Ark. Zool. 19A: 1–116.
  3. Davies, N.B. & Welbergen, J.A. (2008). "Cuckoo–hawk mimicry? An experimental test" (PDF). Proceedings of the Royal Society of London, Series B,. 275 (1644): 1817–1822. PMC 2587796. PMID 18467298. डीओआइ:10.1098/rspb.2008.0331.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link) सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  4. Rasmussen, PC & JC Anderton (2005). Birds of South Asia: The Ripley Guide. 2. Smithsonian Institution & Lynx Edicions. पृ॰ 229.
  5. Ali S & Ripley SD (1981). Handbook of the Birds of India and Pakistan. Volume 3 (2 संस्करण). New Delhi: Oxford University Press. पपृ॰ 200–202.

बाहरी कड़ियाँ

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पपीहा: Brief Summary ( Hindi )

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पपीहा एक पक्षी है जो दक्षिण एशिया में बहुतायत में पाया जाता है। यह दिखने में शिकरा की तरह होता है। इसके उड़ने और बैठने का तरीका भी बिल्कुल शिकरा जैसा होता है। इसीलिए अंग्रेज़ी में इसको Common Hawk-Cuckoo कहते हैं। यह अपना घोंसला नहीं बनाता है और दूसरे चिड़ियों के घोंसलों में अपने अण्डे देता है। प्रजनन काल में नर तीन स्वर की आवाज़ दोहराता रहता है जिसमें दूसरा स्वर सबसे लंबा और ज़्यादा तीव्र होता है। यह स्वर धीरे-धीरे तेज होते जाते हैं और एकदम बन्द हो जाते हैं और काफ़ी देर तक चलता रहता है; पूरे दिन, शाम को देर तक और सवेरे पौं फटने तक।

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पावशा ( Marathi )

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पावशा किंवा पावश्या (इंग्रजी: Brainfever Bird or Common Hawk-Cuckoo), (शास्त्रीय नाव: Cuculus varius varius), आकाराने साधारण कबुतराएवढा असतो.पावशाचे नाते पावसाळ्याशी जोडले आहे. मान्सूनचा पाऊस येण्याआधी याच्या 'पाऊस आला', 'पाऊस आला' (किंवा 'पेरते व्हा', 'पेरते व्हा') अशा आवाजाने पावसाच्या आगमनाची सूचना मिळते असे. महाराष्ट्रातील लोक याला बळीराजा मानतात व शेतीच्या कामाला हा कामी येतो. हा पक्षी सामान्यांच्या जवळचा आहे. यावर अनेक भाषांमध्ये लोक-कथा, गीते, म्हणी वगैरे आहेत.

उत्तरी भारतीयांना याचा आवाज ’पी-पहा, पी-कहां’ असा ऐकू येतो. इंग्रजांना तो”हू बी यू, हू बी यू’ असातर काहींना ’ओह लॉर, ओह लॉर’ ’वी फील इट, वी फील इट’असा ऐकू येतो. तर काही फिरंग्यांना तो ब्रे..न फीव्हर, ब्रे..न फीव्हर’ असा वाटतो. यावरूनच या पक्षाला इंग्रजीत ब्रेनफीव्हर पक्षी म्हणतात. बंगाली लोकांना याचा आवाज ’चोख गेलो’ म्हणजे माझे डोळे गेले असा वाटतो.

या पावश्याचा आवाज चार ते सहा वेळा खालून वरच्या पट्टीत वाढत जातो व एक दोन मिनिटांच्या मध्यंतरानंतर परत सुरू होतो. ढगाळ वातावरणात आणि चांदणे पडलेल्या रात्रीत याचा आवाज बुलंद होत सतत चालू असतो, त्यामुळे अगदी गाढ झोपणाऱ्याचीही झोप उडते. मादीचा आवाज नरापेक्षा वेगळा आणि थोडा कर्कश असतो. .

नर-मादी दिसायला सारखेच, राखेच्या रंगाचे, शेपटीवर पट्टे असतात. भारतात सर्वत्र आढळतो, झुडपी जंगल आणि शेताच्या जवळपास राहणे पसंत करतो. विणीचा काळ मार्च ते जून असून कोकिळेप्रमाणेच पावश्याची मादी स्वतःचे अंडे दुसऱ्या पक्षांच्या घरट्यात गुपचूप टाकून निघून जाते. पुढे यांच्या पिलांना वाढवायची जबाबदारी अशा पालकांची असते.

भारतात ब्रिटिश राजवटीत राहणाऱ्या इंग्रजांनी या पक्ष्याला ‘ब्रेनफीव्हर बर्ड’ हे नाव दिले आणि ते रूढ झाले.[१]

पावशाचे गाणे

चित्रदालन

संदर्भ आणि नोंदी

  1. a b कर्वे, ज.नी. "पावशा". मराठी विश्वकोश (वेब आवृत्ती.). महाराष्ट्र राज्य मराठी विश्वकोश निर्मिती मंडळ. २५ नोव्हेंबर २०१३ रोजी पाहिले.
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पावशा: Brief Summary ( Marathi )

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पावशा किंवा पावश्या (इंग्रजी: Brainfever Bird or Common Hawk-Cuckoo), (शास्त्रीय नाव: Cuculus varius varius), आकाराने साधारण कबुतराएवढा असतो.पावशाचे नाते पावसाळ्याशी जोडले आहे. मान्सूनचा पाऊस येण्याआधी याच्या 'पाऊस आला', 'पाऊस आला' (किंवा 'पेरते व्हा', 'पेरते व्हा') अशा आवाजाने पावसाच्या आगमनाची सूचना मिळते असे. महाराष्ट्रातील लोक याला बळीराजा मानतात व शेतीच्या कामाला हा कामी येतो. हा पक्षी सामान्यांच्या जवळचा आहे. यावर अनेक भाषांमध्ये लोक-कथा, गीते, म्हणी वगैरे आहेत.

उत्तरी भारतीयांना याचा आवाज ’पी-पहा, पी-कहां’ असा ऐकू येतो. इंग्रजांना तो”हू बी यू, हू बी यू’ असातर काहींना ’ओह लॉर, ओह लॉर’ ’वी फील इट, वी फील इट’असा ऐकू येतो. तर काही फिरंग्यांना तो ब्रे..न फीव्हर, ब्रे..न फीव्हर’ असा वाटतो. यावरूनच या पक्षाला इंग्रजीत ब्रेनफीव्हर पक्षी म्हणतात. बंगाली लोकांना याचा आवाज ’चोख गेलो’ म्हणजे माझे डोळे गेले असा वाटतो.

या पावश्याचा आवाज चार ते सहा वेळा खालून वरच्या पट्टीत वाढत जातो व एक दोन मिनिटांच्या मध्यंतरानंतर परत सुरू होतो. ढगाळ वातावरणात आणि चांदणे पडलेल्या रात्रीत याचा आवाज बुलंद होत सतत चालू असतो, त्यामुळे अगदी गाढ झोपणाऱ्याचीही झोप उडते. मादीचा आवाज नरापेक्षा वेगळा आणि थोडा कर्कश असतो. .

नर-मादी दिसायला सारखेच, राखेच्या रंगाचे, शेपटीवर पट्टे असतात. भारतात सर्वत्र आढळतो, झुडपी जंगल आणि शेताच्या जवळपास राहणे पसंत करतो. विणीचा काळ मार्च ते जून असून कोकिळेप्रमाणेच पावश्याची मादी स्वतःचे अंडे दुसऱ्या पक्षांच्या घरट्यात गुपचूप टाकून निघून जाते. पुढे यांच्या पिलांना वाढवायची जबाबदारी अशा पालकांची असते.

भारतात ब्रिटिश राजवटीत राहणाऱ्या इंग्रजांनी या पक्ष्याला ‘ब्रेनफीव्हर बर्ड’ हे नाव दिले आणि ते रूढ झाले.

पावशाचे गाणे
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बीउ कुहियो ( Nepali )

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बीउ कुहियो नेपालमा पाइने एक प्रकारको चराको नाम हो ।

यो पनि हेर्नुहोस्

सन्दर्भ सामग्रीहरू

  1. {{{assessors}}} (2008). Cuculus varius. In: IUCN 2008. IUCN Red List of Threatened Species. Downloaded on 11 July 2009.
  2. Gyldenstolpe, N (१९२६), "Types of birds in the Royal Natural History Museum in Stockholm.", Ark. Zool. 19A: 1–116।

बाह्य लिङ्कहरू

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बीउ कुहियो: Brief Summary ( Nepali )

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बीउ कुहियो नेपालमा पाइने एक प्रकारको चराको नाम हो ।

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ਪਪੀਹਾ ( Punjabi )

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ਪਪੀਹਾ,Sukhna Wildlife Sanctury,Chandigarh,India

ਚਾਤ੍ਰਿਕ (ਪਪੀਹਾ) ਦੱਖਣ ਏਸ਼ੀਆ ਵਿੱਚ ਆਮ ਪਾਇਆ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਪੰਛੀ ਹੈ। ਇਹ ਸ਼ਕਲ ਪੱਖੋਂ ਸ਼ਿਕਰੇ ਵਰਗੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਉੱਡਣ ਅਤੇ ਬੈਠਣ ਦਾ ਤਰੀਕਾ ਵੀ ਬਿਲਕੁੱਲ ਸ਼ਿਕਰੇ ਵਰਗਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਇਸਨ੍ਹੂੰ Common Hawk - Cuckoo ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਆਪਣਾ ਆਲ੍ਹਣਾ ਨਹੀਂ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪੰਛੀਆਂ ਦੇ ਆਲ੍ਹਣਿਆਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਆਂਡੇ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਪ੍ਰਜਨਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਨਰ ਤਿੰਨ ਸਵਰ ਵਾਲੀ ਅਵਾਜ ਦੁਹਰਾਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਦੂਜਾ ਸਵਰ ਸਭ ਤੋਂ ਲੰਮਾ ਅਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੇਜ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਸਵਰ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਤੇਜ ਹੁੰਦੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇੱਕਦਮ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਦੇਰ ਤੱਕ ਇਵੇਂ ਚੱਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ; ਸਾਰਾ ਦਿਨ, ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਦੇਰ ਤੱਕ ਅਤੇ ਸਵੇਰੇ ਪਹੁ ਫਟਣ ਤੱਕ।

ਜਾਣ ਪਹਿਚਾਣ

ਪਪੀਹਾ ਕੀੜੇ ਖਾਣ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਪੰਛੀ ਹੈ ਜੋ ਬਸੰਤ ਅਤੇ ਵਰਖਾ ਵਿੱਚ ਅਕਸਰ ਅੰਬ ਦੇ ਬੂਟੇ ਉੱਤੇ ਬੈਠਕੇ ਬੜੀ ਸੁਰੀਲੀ ਆਵਾਜ ਵਿੱਚ ਬੋਲਦਾ ਹੈ। ਭੂਗੋਲਿਕ ਵਭਿੰਨਤਾ ਤੋਂ ਇਹ ਪੰਛੀ ਕਈ ਰੰਗ, ਰੂਪ ਅਤੇ ਸ਼ਕਲ ਦਾ ਮਿਲਦਾ ਹੈ। ਉੱਤਰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਸ ਦਾ ਡੀਲ ਡੌਲ ਅਕਸਰ ਕਬੂਤਰ ਦੇ ਬਰਾਬਰ (ਲਗਪਗ 34 ਸਮ) ਅਤੇ ਰੰਗ ਹਲਕਾ ਕਾਲ਼ਾ ਜਾਂ ਮਟਮੈਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਦੱਖਣ ਭਾਰਤ ਦਾ ਪਪੀਹਾ ਸ਼ਕਲ ਪਖੋਂ ਇਸ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਵੱਡਾ ਅਤੇ ਰੰਗ ਵਿੱਚ ਰੰਗ ਬਰੰਗਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਵੱਖ ਵੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਵੀ ਅਨੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਪੀਹੇ ਮਿਲਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਦਾਚਿਤ ਉੱਤਰ ਅਤੇ ਦੱਖਣ ਦੇ ਪਪੀਹੇ ਦੇ ਬੇਰੜਾ ਬੱਚੇ ਹਨ। ਮਾਦਾ ਦਾ ਰੰਗਰੂਪ ਅਕਸਰ ਸਭਨੀ ਥਾਂਈਂ ਇੱਕ ਹੀ ਜਿਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਪਪੀਹਾ ਦਰਖਤ ਤੋਂ ਹੇਠਾਂ ਅਕਸਰ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਉਤਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਉੱਤੇ ਵੀ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਛਿਪ ਕੇ ਬੈਠਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਕਦੇ ਹੀ ਉਸ ਉੱਤੇ ਪੈਂਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਦੀ ਬੋਲੀ ਬਹੁਤ ਹੀ ਰਸੀਲੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਵਿੱਚ ਕਈ ਸਵਰਾਂ ਦਾ ਸਮਾਵੇਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਕਈਆਂ ਦੇ ਖਿਆਲ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਦੀ ਬੋਲੀ ਵਿੱਚ ਕੋਇਲ ਦੀ ਬੋਲੀ ਤੋਂ ਵੀ ਜਿਆਦਾ ਮਿਠਾਸ ਹੈ। ਹਿੰਦੀ ਕਵੀਆਂ ਵਿਸ਼ਵਾਸ਼ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੀ ਬੋਲੀ ਵਿੱਚ ਪੀ ਕਹਾਂ....? ਪੀ ਕਹਾਂ ....? ਅਰਥਾਤ ਪਤੀ ਕਿੱਥੇ ਹੈ? ਬੋਲਦਾ ਹੈ। ਵਾਸਤਵ ਵਿੱਚ ਧਿਆਨ ਦੇਣ ਤੋਂ ਇਸ ਦੀ ਰਾਗਮਈ ਬੋਲੀ ਰਾਹੀਂ ਇਸ ਵਾਕ ਦੇ ਉੱਚਾਰਣ ਦੇ ਸਮਾਨ ਹੀ ਆਵਾਜ ਨਿਕਲਦੀ ਲੱਗਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਕੇਵਲ ਵਰਖਾ ਦੀ ਬੂੰਦ ਦਾ ਹੀ ਜਲ ਪੀਂਦਾ ਹੈ, ਪਿਆਸ ਹਥੋਂ ਮਰ ਰਿਹਾ ਵੀ ਨਦੀ, ਤਾਲਾਬ ਆਦਿ ਦੇ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਚੁੰਜ ਨਹੀਂ ਡੁਬੋਂਦਾ। ਜਦੋਂ ਅਕਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਮੇਘ ਛਾ ਰਹੇ ਹੋਣ, ਉਸ ਸਮੇਂ ਇਹ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਇਸ ਆਸ ਨਾਲ ਕਿ ਕਦਾਚਿਤ ਕੋਈ ਬੂੰਦ ਮੇਰੇ ਮੂੰਹ ਵਿੱਚ ਪੈ ਜਾਵੇ, ਬਰਾਬਰ ਚੁੰਜ ਖੋਲ੍ਹੇ ਉਹਨਾਂ ਵੱਲ ਇੱਕ ਲਗਾਏ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਬਹੁਤਿਆਂ ਨੇ ਤਾਂ ਇੱਥੇ ਤਕ ਮੰਨ ਰੱਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਕੇਵਲ ਸਵਾਤੀ ਨਛੱਤਰ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਵਰਖਾ ਦਾ ਹੀ ਪਾਣੀ ਪੀਂਦਾ ਹੈ, ਅਤੇ ਅਗਰ ਇਹ ਨਛੱਤਰ ਨਾਂ ਵਰ੍ਹੇ ਤਾਂ ਸਾਲ ਭਰ ਪਿਆਸਾ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਹਵਾਲੇ

  1. BirdLife International (2008). Cuculus varius. 2008 IUCN Red List of Threatened Species. IUCN 2008. Retrieved on 11 July 2009.
  2. Gyldenstolpe,N (1926). "Types of birds in the Royal Natural History Museum in Stockholm." (PDF). Ark. Zool. 19A: 1–116.
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ਪਪੀਹਾ: Brief Summary ( Punjabi )

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 src= ਪਪੀਹਾ,Sukhna Wildlife Sanctury,Chandigarh,India

ਚਾਤ੍ਰਿਕ (ਪਪੀਹਾ) ਦੱਖਣ ਏਸ਼ੀਆ ਵਿੱਚ ਆਮ ਪਾਇਆ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਪੰਛੀ ਹੈ। ਇਹ ਸ਼ਕਲ ਪੱਖੋਂ ਸ਼ਿਕਰੇ ਵਰਗੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਉੱਡਣ ਅਤੇ ਬੈਠਣ ਦਾ ਤਰੀਕਾ ਵੀ ਬਿਲਕੁੱਲ ਸ਼ਿਕਰੇ ਵਰਗਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਇਸਨ੍ਹੂੰ Common Hawk - Cuckoo ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਆਪਣਾ ਆਲ੍ਹਣਾ ਨਹੀਂ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪੰਛੀਆਂ ਦੇ ਆਲ੍ਹਣਿਆਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਆਂਡੇ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਪ੍ਰਜਨਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਨਰ ਤਿੰਨ ਸਵਰ ਵਾਲੀ ਅਵਾਜ ਦੁਹਰਾਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਦੂਜਾ ਸਵਰ ਸਭ ਤੋਂ ਲੰਮਾ ਅਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੇਜ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਸਵਰ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਤੇਜ ਹੁੰਦੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇੱਕਦਮ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਦੇਰ ਤੱਕ ਇਵੇਂ ਚੱਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ; ਸਾਰਾ ਦਿਨ, ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਦੇਰ ਤੱਕ ਅਤੇ ਸਵੇਰੇ ਪਹੁ ਫਟਣ ਤੱਕ।

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அக்காக்குயில் ( Tamil )

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அக்காக்குயில் அல்லது அக்காக்குருவி (Common hawk-cuckoo)(Hierococcyx varius) என்று அறியப்படும் இப்பறவை இந்திய துணைக்கண்டத்தை வாழ்விடமாகக் கொண்டது. இது குயிலின் இனத்தைச்சேர்ந்த பறவையாகும். இப்பறவை தோற்றத்தில் வல்லூறு என்ற பறவைப்போல் இருக்கும். இவை காக்கை அல்லது தவிட்டு குருவி போன்ற பறவைகளின் கூட்டில் முட்டைகளை இடும்.

வாழ்வுமுறை

அக்காக்குயில் மனிதர்கள் வாழும் பகுதில் அமைந்துள்ள மரங்களில் வாழும். ஆனாலும் எளிதில் மனிதர்களின் கண்ணில் தென்படாது.

விளக்கம்

அக்காக்குயில் பொதுவாகப் பருந்தைவிட சிறியதாகவும் புறாவைப்போல் உருவத்தைக்கொண்ட குயிலினப் பறவை ஆகும். இப்பறவையின் தோகை நீறுபூத்த சாம்பல் நிறத்தில் காணப்படும் அதோடு கீழே வெள்ளை நிறமும், பழுப்பு நிறத்தில் சிறு சிறு கோடுகளும் கொண்டதாக காணப்படும். இதன் வால் பகுதி முடியும் இடத்தில் விரிந்து காணப்படும். ஆண், பெண் இரண்டுக்குமே வால் பகுதி ஒரே மாதரித்தான் காணப்படுகிறது. இப்பறவையில் கண்களைச்சுற்றி ஒரு தனித்துவமானபடி மஞ்சள் வளையம் காணப்படுகிறது. வயதுவந்த பறவைகளின் உடலில் இடவலமாக வல்லூறுக்கு உள்ளது போல் கோடுகள் காணப்படுகிறது.

இப்பறவை பார்ப்பதற்குப் பருந்து போல் இருந்தாலும் இது பருந்து இல்லை. ஆனால் இறக்கைகளை அசைக்கும் விதம் மற்றும் தனது இரையைப் பிடித்து லாவகமாகத் தடையின்றி நழுவிச்செல்லும் போக்கு, வாலை ஆட்டும் பாணி, மேலே எழும்பிச் செல்லும் விதம் மேலிருந்து கீழே இறங்குவது போன்ற செயல்களால் பருந்துபோல் (வைரிபோல்) தெரியும். இவை சிறிய பறவைகள், அணில்கள் போன்றவைகளைப் பார்த்தால் ஒலியெழுப்பும். இப்பறவைகளில் ஆண் பறவை பெண் பறவையைவிட பெரியதாக இருக்கும்.

இப்பறவையைப் பார்ப்பவர்கள் தொண்டை மற்றும் மார்பக இருண்ட கோடுகள் போன்றவற்றைக் கொண்டு பெரிய பருந்து-குயில் (Large Hawk-Cuckoo) என எண்ணுகிறார்கள். இந்த குழப்பத்திற்கு இன்னொரு காரணம் இதன் தாடையும், கன்னமும் பருந்து போல் இருக்கும்.[3]

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Immature with orange bill and indistinct eye-ring (கொல்கத்தா)

கோடை முடிந்து இப்பறவை இலையுதிர் காலங்களில் தனது இடத்தைத் தேர்வு செய்ய ஆரம்பிக்கிறது.

மேற்கோள்

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அக்காக்குயில்: Brief Summary ( Tamil )

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அக்காக்குயில் அல்லது அக்காக்குருவி (Common hawk-cuckoo)(Hierococcyx varius) என்று அறியப்படும் இப்பறவை இந்திய துணைக்கண்டத்தை வாழ்விடமாகக் கொண்டது. இது குயிலின் இனத்தைச்சேர்ந்த பறவையாகும். இப்பறவை தோற்றத்தில் வல்லூறு என்ற பறவைப்போல் இருக்கும். இவை காக்கை அல்லது தவிட்டு குருவி போன்ற பறவைகளின் கூட்டில் முட்டைகளை இடும்.

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